मतवाले झूलों वाले उस मधुवन में जाना छोड़ दिया
चुपके से चुन चुन के आंचल में कलियां लाना छोड़ दिया।
बड़े प्यार से चुन चुन कर,
मोती से मुट्ठी भर भर कर,
बचपन ने इसे सजाया था,
इक पागल हवा के झोंके ने,
मिट्टी का खिलौना तोड़ दिया।
रंगो के संग भटकती थी,
कभी गिरती थी कभी कटती थी,
हर बार नई डोरी से जुड़ी,
अब नीले नीले साए पर,
वो पतंग उड़ाना छोड़ दिया।
कितनी बातें थी करने को,
हर बात पे हम मुस्काते थे,
हर धुन पर पांव थिरकते थे,
और चलते चलते गाते थे,
धड़कन की मीठी तानों पर,
अब बिना गुजारिश महफिल में,
वो गीत सुनाना छोड़ दिया।
न भटकन है ना प्यास कोई,
ना मंजिल की तलाश कोई,
बस सीधे चलते जाना है,
हमने भी अपनी राहों को,
ऐसी राहों से जोड़ दिया।
चुपके से चुन चुन के आंचल में कलियां लाना छोड़ दिया।
बड़े प्यार से चुन चुन कर,
मोती से मुट्ठी भर भर कर,
बचपन ने इसे सजाया था,
इक पागल हवा के झोंके ने,
मिट्टी का खिलौना तोड़ दिया।
रंगो के संग भटकती थी,
कभी गिरती थी कभी कटती थी,
हर बार नई डोरी से जुड़ी,
अब नीले नीले साए पर,
वो पतंग उड़ाना छोड़ दिया।
कितनी बातें थी करने को,
हर बात पे हम मुस्काते थे,
हर धुन पर पांव थिरकते थे,
और चलते चलते गाते थे,
धड़कन की मीठी तानों पर,
अब बिना गुजारिश महफिल में,
वो गीत सुनाना छोड़ दिया।
न भटकन है ना प्यास कोई,
ना मंजिल की तलाश कोई,
बस सीधे चलते जाना है,
हमने भी अपनी राहों को,
ऐसी राहों से जोड़ दिया।
11 comments:
bahut khub
बहुत बढिया!
बहुत ही सुंदर
अब बिना गुजारिश महफिल में,
वो गीत सुनाना छोड़ दिया।
न भटकन है न कोई प्यास है
यही मन का सच्चा उल्लास है
कहीं मन के भीतर स्पंदित हो रही
एक रूहानी , एक अखंड सुवास है.
सुंदर! अति सुंदर!
सुंदर गीत
kuchh khaas nahi hai.
parantu prayaas ki taareef karunga
अच्छा लिखा है।
नकहीं मन के भीतर स्पंदित हो रही
एक रूहानी , एक अखंड सुवास है.
बहुत ही बढिया. लिखती रहें
रंगो के संग भटकती थी,
कभी गिरती थी कभी कटती थी,
हर बार नई डोरी से जुड़ी,
अब नीले नीले साए पर,
वो पतंग उड़ाना छोड़ दिया।
वाह वाह
सच में मैंने भी अब वो पतंग उड़ाना छोड़ दिया..क्यों, कैसे पता नहीं..लेकिन सच में वो दिन बहुत अच्छे थे..फिर से यही कहूंगी कि आप बहुत अच्छा लिखती हैं..
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