Tuesday, June 26, 2007

रख दिया पाँव अग्निपथ पर

इस अंधकार पूरित घर में अब भी कोई उज्जवल कोना है,
इच्छाओं को बहलाने को कल्पना का रुचिर खिलौना है।

मेरे शान्त क्लान्त अंतर के लिए तेरे नेह का मृदुल बिछौना है,
आँखों में मधुर सपने लेकर पाषाण खण्ड पर सोना है।

आँसू की निर्मल धारा से आँचल के धूलिकण धोना है,
रख दिया पाँव अग्निपथ पर अब हो जाए जो होना है।

Sunday, June 24, 2007

लहर उठे तेरी हस्ती से गुलाबों जैसी




खुदा करे कि किसी रोज ऐसा हो जाए,


कि मेरी रूह तेरी रूह में खो जाए।




लहर उठे तेरी हस्ती से गुलाबों जैसी,


मेरे रग-रग को रोम-रोम को भिगो जाए।




सारे जहां की रंगत नजर आए इतने,


दिल के दर्पण के सारे दाग ऐसे धो जाए।




तेरे आंखो में झिलमिलाते हुए मोती को,


मेरी सांसो के तार में कोई पिरो जाए।




दर्द सारे कभी चुन लूं मैं धड़कनों से तेरी,


और मैं जागूं तेरे वास्ते तू सो जाए।




न भटके इस जहां में ख्वाहिशें मेरी,


तुम्हे पाने की तमन्ना जो जमा हो जाए।