Wednesday, November 14, 2007

वो पतंग उड़ाना छोड़ दिया।



मतवाले झूलों वाले उस मधुवन में जाना छोड़ दिया
चुपके से चुन चुन के आंचल में कलियां लाना छोड़ दिया।



बड़े प्यार से चुन चुन कर,
मोती से मुट्ठी भर भर कर,
बचपन ने इसे सजाया था,
इक पागल हवा के झोंके ने,
मिट्टी का खिलौना तोड़ दिया।



रंगो के संग भटकती थी,
कभी गिरती थी कभी कटती थी,
हर बार नई डोरी से जुड़ी,
अब नीले नीले साए पर,
वो पतंग उड़ाना छोड़ दिया।



कितनी बातें थी करने को,
हर बात पे हम मुस्काते थे,
हर धुन पर पांव थिरकते थे,
और चलते चलते गाते थे,
धड़कन की मीठी तानों पर,
अब बिना गुजारिश महफिल में,
वो गीत सुनाना छोड़ दिया।


न भटकन है ना प्यास कोई,
ना मंजिल की तलाश कोई,
बस सीधे चलते जाना है,
हमने भी अपनी राहों को,
ऐसी राहों से जोड़ दिया।

Monday, November 5, 2007

हमने तुमको देखा है, जीवन के दिन और रातों में



उजली उजली मुस्कानों में, आँसू की बरसातों में,
हमने तुमको देखा है, जीवन के दिन और रातों में।


उजड़े घर फिर फिर बनाते, रोज नई दुकान सजाते।
उनके जीने के साहस में, जो जीते फुटपाथों में।
हमने तुमको देखा है ...


दर्द बाँटती गलियों में, माला बनती कलियों में।
पत्थर को मूरत करते, कारीगर के हाथों में।
हमने तुमको देखा है ...

Friday, November 2, 2007

आँसुओं की बारिश में


जलती हुई सांसों में सितार लेके चलते हैं,
आँसुओं की बारिश में मल्हार लेके चलते हैं,
लाख वीराने खिजाएं राह में आए तो क्या,
हम तो अपने साए में बहार लेके चलते हैं।

पस्त कर दे हौसला अपना किसी में दम नहीं,
हर पल है मेरी जिंदगी अब मौत का भी गम नहीं,
लहरों से हैं खेलती तूफान के ऊपर चले,
हिम्मतों के हाथ वो पतवार लेके चलते हैं।

बूंद बूंद को तरसती किसी बाल्टी के लिए,
पत्थरों को तोड़ती तपती गरीबी के लिए,
अपने ही पसीने की ठंडक पा के खुश हो जाते हैं,
आओ इन सब के लिए फुहार लेके चलते हैं।