Saturday, October 18, 2008

काश...तुम सपना नही यथार्थ होते....

काश ! .......कभी ऐसा हो.....

हम रेशमी धागों से रुमाल पर तुम्हारा नाम टाँके..

तुम्हारे लिए फूल चुनकर लाँए और माला गूँथे..

काश ! .....कभी खिड़की पर देर तक बैठकर तुम्हारी राह देंखे..

....कभी यूँ ही अकेलें मे मुस्कायेँ......

कभी ये निगाहें आसमान पर टिकी रह जाएं

काश! ......ऐसा होता......जिन्दगी के कुछ पल तुम्हारे लिए होते
काश! ........................

तुम सपना नही यथार्थ होते.......



Wednesday, October 15, 2008

आँखों मे था कोई रंगीन सा पर्दा

दिल मे दहकते शोले दहकते चले गए।
हम अपनी बेखुदी पे ही हँसते चले गए ।

रेशम के तार से बुन रहे थे कोई ख्वाब,
वो जाल कैसे बन गए, फंसते चले गए।

इक आह सी निकली थी, दम घुटने लगा था,
हम ग़म के बाजुओं मे कसते चले गए।

फूलों भरी राहों में छिपे थे हजारों खार,
पाँवों से लहू बन के रिसते चले गए।

आँखों में था कोई रंगीन सा पर्दा,
पाँवों को कैसे रास्ते दिखते चले गए।

हर बार उजड़ता रहा ये दिल का बसेरा
हर बार ईट नीव की रखते चले गए।




Monday, October 13, 2008

हजार घड़ियाँ फुरक़त की

हज़ार घड़ियां फुरक़त की गवारा होंगी,
बस इन्तज़ार को कोई यक़ीन दे जाओ।

अब हकीक़त से न बहलेगी तमन्ना मेरी,
इसके ख़ातिर इक सपना हसीन दे जाओ।

उम्मीद इक दिलासा और इक सपना,
इन्ही सहारों पर दीवाने जिया करते हैं।

आने वाले दिनो के रेशमी पलों से ही,
वो हर जख़्म ज़िन्दगी का सिया करते हैं।

वीरान ज़िन्दगी की मेरी राहों में
ख़्वाब की कलियों से महकी ज़मीन दे जाओ।

अब हकीक़त से........................

जला
के बीते लम्हों को अपनी आँखों में
किसी तस्वीर की आरती उतार लेते हैं

सब्र होता है बहुत दीद के दीवानों में,
एक वादे पर सदियाँ गुज़ार देते हैं।

दिल के दीवारों मे तस्वीर कोई खिंच जाए,
मेरे लिए तो कोई पल रंगीन दे जाओ।

अब हकीकत से न बहलेगी तमन्ना मेरी,
इसके ख़ातिर इक सपना हसीन दे जाओ।