Wednesday, February 13, 2008

झूठे सपनों के रंग



जब मन के सब सुख दूर हुए,
हम जीने को मजबूर
हुए,
तब से झूठे सपनों का रंग
आँखों में भरना सीख गए।

मेरा मन का जो अपना था,
वो प्यारा सा इक सपना
था,
सच हुआ मगर केवल छल था
जैसे खुशियों का इक पल था।

जब सच ने हर सपना लूटा,
और हर वादा हुआ झूठा,
तब से इन चांद सितारों से
हम बातें करना सीख गए।


मन मेरा प्रियतम का घर था,
पावन मंदिर सा सुंदर था,
इक दिन फिर हुआ ना जाने क्या
ना मंदिर था ना ईश्वर था।


जब देव ने देवालय तोड़ा,
विश्वास ने भी दामन छोड़ा,
तब से राहों के पत्थर की
हम पूजा करना सीख गए।

Friday, February 8, 2008

रोशनदानों की उजली किरणों से नहाया करते हैं

आँखों से छलकती शबनम को पलकों में सजाया करते हैं।
लेकर चिनगारी सीने से हम दीप जलाया करते हैं

फरमान मौत का मिल जाए ना जज्बातों की बोली को,
दरवाजा बंद करके अब कमरे में गाया करते हैं।

जबसे दुनिया में देखा है दो दो चेहरे इंसानों के,
हम अपनी दिल की बातों को कागज को बताया करते हैं।

मेरी हंसती हुई आंखों में दिख ना जाए कहीं नूर तेरा,
इसलिए तो पलकों की चिलमन रह रह के गिराया करते
हैं।

पाबंदी है इस नगरी में गर खुली खिड़कियों पर तो क्या,
हम रोशनदानों की उजली किरणों से नहाया करते हैं।

Wednesday, February 6, 2008

यदि हो बांहों में बल तेरे



हर एक बंद गली के आगे भी कभी पंथ निकलता है।
लेकर आस सबेरे का दीपक भी रात भर जलता है।।

जग की लंबी चौड़ी सड़कों पर हमको है गिरने का डर,
दो सूत की पतली डोरी पर नट भार उठाकर चलता है।
हर एक बंद गली के...

अंधियारी मूक गुफाओं के पाषाणों में अग्नि सोई,
यदि है बांहों में बल तेरे, देखो फिर अंधेरा टलता है।
हर एक बंद गली के....

Sunday, February 3, 2008

आँसुओं में हंसी झिलमिलाए





इस वीराने से जी घबराए,
चलके गुलशन में हम घर
बनाएं।

आओ हर लब पर कलियां खिलाएं,
इस घर को ही गुलशन बनाएं।
माना वीरान बंजर जमीं है,
तनहा
तनहा सी सोई हुई है।
थाम लें अपनी अपनी कुदालें,
इसके सीने से पत्थर निकालें।

दरिया का रुख इधर मोड़ लाएं,
रस भरी फिर फसल लहलहाए।

आहटों से उदास आंगन के,
साज कण कण में जगने लगेंगे।
दो इन पर अपनी उंगलियां,
तार हर दिल के बजने लगेंगे।

आँसुओं में हंसी झिलमिलाए,
दर्द की हर जुबां गुनगनाए।

आओ
हर लब पर कलियां खिलाएं,
इस घर को ही गुलशन बनाएं।