जब मन के सब सुख दूर हुए,
हम जीने को मजबूर हुए,
हम जीने को मजबूर हुए,
तब से झूठे सपनों का रंग
आँखों में भरना सीख गए।
मेरा मन का जो अपना था,
वो प्यारा सा इक सपना था,
सच हुआ मगर केवल छल था
वो प्यारा सा इक सपना था,
सच हुआ मगर केवल छल था
जैसे खुशियों का इक पल था।
जब सच ने हर सपना लूटा,
और हर वादा हुआ झूठा,
और हर वादा हुआ झूठा,
तब से इन चांद सितारों से
हम बातें करना सीख गए।
मन मेरा प्रियतम का घर था,
पावन मंदिर सा सुंदर था,
इक दिन फिर हुआ ना जाने क्या
पावन मंदिर सा सुंदर था,
इक दिन फिर हुआ ना जाने क्या
ना मंदिर था ना ईश्वर था।
जब देव ने देवालय तोड़ा,
विश्वास ने भी दामन छोड़ा,
तब से राहों के पत्थर की
हम पूजा करना सीख गए।