हर एक बंद गली के आगे भी कभी पंथ निकलता है।
लेकर आस सबेरे का दीपक भी रात भर जलता है।।
जग की लंबी चौड़ी सड़कों पर हमको है गिरने का डर,
दो सूत की पतली डोरी पर नट भार उठाकर चलता है।
हर एक बंद गली के...
लेकर आस सबेरे का दीपक भी रात भर जलता है।।
जग की लंबी चौड़ी सड़कों पर हमको है गिरने का डर,
दो सूत की पतली डोरी पर नट भार उठाकर चलता है।
हर एक बंद गली के...
अंधियारी मूक गुफाओं के पाषाणों में अग्नि सोई,
यदि है बांहों में बल तेरे, देखो फिर अंधेरा टलता है।
हर एक बंद गली के....
यदि है बांहों में बल तेरे, देखो फिर अंधेरा टलता है।
हर एक बंद गली के....
7 comments:
सही लिखा है
अच्छे शब्द और सुंदर भाव...बहुत बढ़िया...यूँ ही लिखती रहें.
नीरज
kya baat kahi hai...!
बहुत सुंदर रचना है. जीवन के इन भावों को देखने की दृष्टि बहुत कम लोगों के पास होती है. और लिखिए.
bahut badhiya likha hai,agar bahon mein bal ho,har andhera tal jayega.
Kabhi gahan antarman se sajaya hai,, ese pryas hi kavita ko chetna dete hain..bahut achha, nat ka example bahut khoob hai.
bahut sundar charu
badhai ho sundar bhavo ke liye
Post a Comment