Wednesday, February 6, 2008

यदि हो बांहों में बल तेरे



हर एक बंद गली के आगे भी कभी पंथ निकलता है।
लेकर आस सबेरे का दीपक भी रात भर जलता है।।

जग की लंबी चौड़ी सड़कों पर हमको है गिरने का डर,
दो सूत की पतली डोरी पर नट भार उठाकर चलता है।
हर एक बंद गली के...

अंधियारी मूक गुफाओं के पाषाणों में अग्नि सोई,
यदि है बांहों में बल तेरे, देखो फिर अंधेरा टलता है।
हर एक बंद गली के....

7 comments:

Manojaya said...

सही लिखा है

नीरज गोस्वामी said...

अच्छे शब्द और सुंदर भाव...बहुत बढ़िया...यूँ ही लिखती रहें.
नीरज

कंचन सिंह चौहान said...

kya baat kahi hai...!

Shailesh Narwade said...

बहुत सुंदर रचना है. जीवन के इन भावों को देखने की दृष्टि बहुत कम लोगों के पास होती है. और लिखिए.

Anonymous said...

bahut badhiya likha hai,agar bahon mein bal ho,har andhera tal jayega.

राकेश जैन said...

Kabhi gahan antarman se sajaya hai,, ese pryas hi kavita ko chetna dete hain..bahut achha, nat ka example bahut khoob hai.

addictionofcinema said...

bahut sundar charu
badhai ho sundar bhavo ke liye