इस वीराने से जी घबराए,
चलके गुलशन में हम घर बनाएं।
चलके गुलशन में हम घर बनाएं।
आओ हर लब पर कलियां खिलाएं,
इस घर को ही गुलशन बनाएं।
माना वीरान बंजर जमीं है,
तनहा तनहा सी सोई हुई है।
थाम लें अपनी अपनी कुदालें,
तनहा तनहा सी सोई हुई है।
थाम लें अपनी अपनी कुदालें,
इसके सीने से पत्थर निकालें।
दरिया का रुख इधर मोड़ लाएं,
रस भरी फिर फसल लहलहाए।
आहटों से उदास आंगन के,
आहटों से उदास आंगन के,
साज कण कण में जगने लगेंगे।
दो इन पर अपनी उंगलियां,
तार हर दिल के बजने लगेंगे।
आँसुओं में हंसी झिलमिलाए,
दर्द की हर जुबां गुनगनाए।
आओ हर लब पर कलियां खिलाएं,
आओ हर लब पर कलियां खिलाएं,
इस घर को ही गुलशन बनाएं।
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