Sunday, February 3, 2008

आँसुओं में हंसी झिलमिलाए





इस वीराने से जी घबराए,
चलके गुलशन में हम घर
बनाएं।

आओ हर लब पर कलियां खिलाएं,
इस घर को ही गुलशन बनाएं।
माना वीरान बंजर जमीं है,
तनहा
तनहा सी सोई हुई है।
थाम लें अपनी अपनी कुदालें,
इसके सीने से पत्थर निकालें।

दरिया का रुख इधर मोड़ लाएं,
रस भरी फिर फसल लहलहाए।

आहटों से उदास आंगन के,
साज कण कण में जगने लगेंगे।
दो इन पर अपनी उंगलियां,
तार हर दिल के बजने लगेंगे।

आँसुओं में हंसी झिलमिलाए,
दर्द की हर जुबां गुनगनाए।

आओ
हर लब पर कलियां खिलाएं,
इस घर को ही गुलशन बनाएं।

No comments: