Friday, February 8, 2008

रोशनदानों की उजली किरणों से नहाया करते हैं

आँखों से छलकती शबनम को पलकों में सजाया करते हैं।
लेकर चिनगारी सीने से हम दीप जलाया करते हैं

फरमान मौत का मिल जाए ना जज्बातों की बोली को,
दरवाजा बंद करके अब कमरे में गाया करते हैं।

जबसे दुनिया में देखा है दो दो चेहरे इंसानों के,
हम अपनी दिल की बातों को कागज को बताया करते हैं।

मेरी हंसती हुई आंखों में दिख ना जाए कहीं नूर तेरा,
इसलिए तो पलकों की चिलमन रह रह के गिराया करते
हैं।

पाबंदी है इस नगरी में गर खुली खिड़कियों पर तो क्या,
हम रोशनदानों की उजली किरणों से नहाया करते हैं।

7 comments:

गुस्ताखी माफ said...

बहुत अच्छा लिखा है, बहुत भावप्रद

अमिताभ मीत said...

बहुत सुंदर. बेहद नाज़ुक ख़याल, उतनी ही नाज़ुकी से कहे गए.

ghughutibasuti said...

बहुत बढ़िया !
घुघूती बासूती

Unknown said...

vah vah...poori ki poori gazal bahut khubsurat

Unknown said...

बहुत ही खूबसूरत गजल है।

Anonymous said...

fantastic words

अवनीश एस तिवारी said...

बहुत अच्छे | यह रचना सुंदर है |
यह एक ग़ज़ल है ( यदि मैं ग़लत ना होऊं तो ....) |

बधाई |


अवनीश तिवारी