आँखों से छलकती शबनम को पलकों में सजाया करते हैं।
लेकर चिनगारी सीने से हम दीप जलाया करते हैं।
फरमान मौत का मिल जाए ना जज्बातों की बोली को,
दरवाजा बंद करके अब कमरे में गाया करते हैं।
जबसे दुनिया में देखा है दो दो चेहरे इंसानों के,
हम अपनी दिल की बातों को कागज को बताया करते हैं।
मेरी हंसती हुई आंखों में दिख ना जाए कहीं नूर तेरा,
इसलिए तो पलकों की चिलमन रह रह के गिराया करते हैं।
पाबंदी है इस नगरी में गर खुली खिड़कियों पर तो क्या,
हम रोशनदानों की उजली किरणों से नहाया करते हैं।
लेकर चिनगारी सीने से हम दीप जलाया करते हैं।
फरमान मौत का मिल जाए ना जज्बातों की बोली को,
दरवाजा बंद करके अब कमरे में गाया करते हैं।
जबसे दुनिया में देखा है दो दो चेहरे इंसानों के,
हम अपनी दिल की बातों को कागज को बताया करते हैं।
मेरी हंसती हुई आंखों में दिख ना जाए कहीं नूर तेरा,
इसलिए तो पलकों की चिलमन रह रह के गिराया करते हैं।
पाबंदी है इस नगरी में गर खुली खिड़कियों पर तो क्या,
हम रोशनदानों की उजली किरणों से नहाया करते हैं।
7 comments:
बहुत अच्छा लिखा है, बहुत भावप्रद
बहुत सुंदर. बेहद नाज़ुक ख़याल, उतनी ही नाज़ुकी से कहे गए.
बहुत बढ़िया !
घुघूती बासूती
vah vah...poori ki poori gazal bahut khubsurat
बहुत ही खूबसूरत गजल है।
fantastic words
बहुत अच्छे | यह रचना सुंदर है |
यह एक ग़ज़ल है ( यदि मैं ग़लत ना होऊं तो ....) |
बधाई |
अवनीश तिवारी
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