Monday, November 5, 2007

हमने तुमको देखा है, जीवन के दिन और रातों में



उजली उजली मुस्कानों में, आँसू की बरसातों में,
हमने तुमको देखा है, जीवन के दिन और रातों में।


उजड़े घर फिर फिर बनाते, रोज नई दुकान सजाते।
उनके जीने के साहस में, जो जीते फुटपाथों में।
हमने तुमको देखा है ...


दर्द बाँटती गलियों में, माला बनती कलियों में।
पत्थर को मूरत करते, कारीगर के हाथों में।
हमने तुमको देखा है ...

6 comments:

Atul Chauhan said...

पत्थर को मूरत करते, कारीगर के हाथों में।
हमने तुमको देखा है ...

कल्पना की उडान के लिये शब्द संयोजन अच्छा है। इसी तरह 'पत्थर को मूरत करते' रहो। मेरी शुभकामनाएं है।

Udan Tashtari said...

सुन्दर.....

बालकिशन said...

सुंदर कविता है.आपको धन्यवाद.

Tarun said...

aati sundar

Unknown said...

मन स्‍पर्शी कविता लखिने के लिए बधाई।

Ashish Maharishi said...

यह कविता खूबसूरत है, जारी रखें