उजली उजली मुस्कानों में, आँसू की बरसातों में,
हमने तुमको देखा है, जीवन के दिन और रातों में।
उजड़े घर फिर फिर बनाते, रोज नई दुकान सजाते।
उनके जीने के साहस में, जो जीते फुटपाथों में।
हमने तुमको देखा है ...
दर्द बाँटती गलियों में, माला बनती कलियों में।
पत्थर को मूरत करते, कारीगर के हाथों में।
हमने तुमको देखा है ...
6 comments:
पत्थर को मूरत करते, कारीगर के हाथों में।
हमने तुमको देखा है ...
कल्पना की उडान के लिये शब्द संयोजन अच्छा है। इसी तरह 'पत्थर को मूरत करते' रहो। मेरी शुभकामनाएं है।
सुन्दर.....
सुंदर कविता है.आपको धन्यवाद.
aati sundar
मन स्पर्शी कविता लखिने के लिए बधाई।
यह कविता खूबसूरत है, जारी रखें
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