इस अंधकार पूरित घर में अब भी कोई उज्जवल कोना है,
इच्छाओं को बहलाने को कल्पना का रुचिर खिलौना है।
मेरे शान्त क्लान्त अंतर के लिए तेरे नेह का मृदुल बिछौना है,
आँखों में मधुर सपने लेकर पाषाण खण्ड पर सोना है।
आँसू की निर्मल धारा से आँचल के धूलिकण धोना है,
रख दिया पाँव अग्निपथ पर अब हो जाए जो होना है।
Tuesday, June 26, 2007
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