जब भी फुरसत हो कोई काम ना नजर आए,
आँख बंद करके हमें याद किया कीजिएगा।
खुशनुमा राज कई दिल की बस्ती में छिपे,
सोच के उनको जरा मुस्कुरा दीजिएगा।
जिंदगी जीने को बड़ा काम यहां रहता है,
दिल ए मजबूर को आराम कहां रहता है।
फिर भी निंदियाई थकी बोझिल बंद पलकों में,
मीठा मीठा सा कोई ख्वाब छिपा लीजिएगा।
जिंदगी दौड़ है व्यापार के पहिए पे चले,
जिस तरफ देखिए बस भीड़ का मंजर निकले।
कभी खामोश आस्मां के नीले साए पर,
एक पल के लिए ही, नजरें टिका दीजिएगा।
Tuesday, October 30, 2007
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8 comments:
चारुजी जिस तरह कविता के माध्यम से आपने दिल खोलकर रख दिया है वो काबिलेतारीफ है.
फिर भी निंदियाई थकी बोझिल बंद पलकों में,
मीठा मीठा सा कोई ख्वाब छिपा लीजिएगा।
बहुत ही सही कहा आपने. हम सब ही आज के इस दौर मे सपनों की कमी से पीड़ित है.
dil ki baat juban par laa di aapne
बहुत बढिया रचना है।
खुशनुमा राज कई दिल की बस्ती में छिपे,
सोच के उनको जरा मुस्कुरा दीजिएगा।
कई राज हैं दिल में....सच...सोचता हूं तो मुस्कुरा देता हूं। लगे रहिए...।
बहोत खूब ।
मुस्कुरा रहा हूं
Charu, Lagta nahi ki tum mein wahi purani baat hai. Itni gambheer to tum kabhi na thi. Badi gahri samvednayen samet li hain tumne apni kalam mein ! Keep it Up Charu. Anurag Upadhyay
आप बहुत अच्छा लिखती हैं,मैंने आपकी कविताओं में अपने मन की अनुभूतियों को पाया है..बहुत सुकून मिला पढ़कर। हालांकि आपने बहुत देर कर दी मिलने में..लेकिन फिर भी अब से ही सही..जब भी वक्त मिलेगा आपकी कविताएं पढ़ना चाहूंगी..
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