Thursday, March 19, 2009

…….और मै अपने टूटे दिल की शिकायतों पर हँस पड़ी


कुछ बुझे बेबस पलों को
चन्द पंक्तियों मे ढाल ,
देना चाहा था किसी को
दर्द का पैगाम

पर हाय.. इक झोका
उड़ा ले गया ,
वो कागज़ का टुकड़ा ...
छोड़ गया गालों पर ...
सूखे आँसुओ के दाग

मैने देखा इक कूड़े के ढेर पर
कुछ नन्ही जाने ,
बीन रही थी
फेंके गए कुछ रंगीन टुकड़े ...
और मै अपने टूटे दिल की शिकायतों पर हँस पड़ी...

एक पुरानी सीलन भरी दीवार की दरारें
सुनाती रही अपनी आत्मकथा ,
नाली के पास की बेल के मुस्काते फूल पर
टिकी रही नजरें

मेरी अतृप्ति बेतहासा दौड़ रही है
इस तपती भूमि में ,
जानते हुए कि
रेत में पानी नही मिलता,
फिर भी ये उम्मीद कि
शायद चमत्कार सी कोई नदी मिल जाए...

जुगनुओं से झिलमिलाती
इस सुरंग के पार ,
क्या होगा कोई रोशनी का नगर ?
पर उसके बाद क्या...?
थम के रह जायेगी यात्रा... ?

--चारुलेखा पाण्डेय

16 comments:

रंजू भाटिया said...

मेरी अतृप्ति बेतहासा दौड़ रही है / इस तपती भूमि में /
जानते हुए / कि रेत में पानी नही मिलता /
फिर भी ये उम्मीद कि शायद चमत्कार सी कोई नदी मिल जाए....

बहुत सुन्दर दिल के करीं लगी यह पंक्तियाँ बेहद खूबसूरत लिखा है

समयचक्र said...

बहुत ही भावपूर्ण अभिव्यक्ति प्रस्तुति.आभार

Anonymous said...

यह एक बड़ी विडम्बना है. हर एक यही चाह रहा होता है की कोई चमत्कार हो जाए. और उसी चमत्कार के इंतज़ार में कभी कभी तो पूरा जीवन ही निकाल देता है. आभार. चारू हमारी बहन है और वह भी किसी चमत्कार की प्रतीक्षा में है.

कंचन सिंह चौहान said...

संवेदनशील...!

Prakash Badal said...

वाह वाह आप की कविताएं बता रही हैं कि आप में अपार संभावनाएं हैं और गूढ़ साहित्य आपके भीतर उमड़-घुमड़ रहा है।

Anonymous said...

एक पुरानी सीलन भरी दीवार की दरारें / सुनाती रही अपनी आत्मकथा
नाली के पास की बेल के मुस्काते फूल पर टिकी रही नजरें /

सच में कभी कभी इंसान के साथ ऐसा ही होता है.

नीरज गोस्वामी said...

सारी की सारी रचनाएँ बेहद असरदार हैं...भावपूर्ण और सुन्दर शब्दों से सजी...अपने आप में पूरी एक कहानी कहती हुई...वाह...बहुत बहुत बधाई...इतना अच्छा लिखने पर.

नीरज

डॉ .अनुराग said...

ऐसा लगा जैसे दर्द है कागजो में ...कराहता हुआ

Udan Tashtari said...

सीधे दिल से-सीधे दिल तक!! बहुत उम्दा!! बधाई

MANVINDER BHIMBER said...

जुगनुओं से झिलमिलाती / इस सुरंग के पार /
क्या होगा कोई रोशनी का नगर ?
पर उसके बाद क्या...???? ….थम के रह जायेगी यात्रा..संवेदनशील...!

शोभित जैन said...

अपने दर्द को किसी और की पीडा देखकर भूला देना.... यही सबसे बड़ी कविता है...साधुवाद

अनिल कान्त said...

रूह तक उतरती हुई कविता है ...उम्मीद का भी एक अपना मज़ा है ...


मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति

चारु said...

Aap sabhi ko bahut bahut dhanywad aapne meri kavita ko saraha..

subramanain bhaiya! aapne apni bahan ko pahchan liya ..hame bahut khushi hui...ye kamana hamesha rahegi ki aapke jeevan me sachmuch me koi chamatkaar ho..

चारु said...

Aap sabhi ko bahut bahut dhanywad aapne meri kavita ko saraha..

subramanain bhaiya! aapne apni bahan ko pahchan liya ..hame bahut khushi hui...ye kamana hamesha rahegi ki aapke jeevan me sachmuch me koi chamatkaar ho..

Devender said...

behad sunder rachna hai, kisi ne kaha bhi hai,
" Kabhi kisi ko mukkamal jahan nahin Milta, Kahin Zameen to kahin Aasman nahin Milta."
Par Ummeed par duniya kayam Hai.
All the Best

Unknown said...

Thank you Charulata Pandey..for updating your poetry talent after a long time...

i'm reading very carefully your every poetry..nd some time thinking the day when i listen first time in staff room of SS.

Once again thanks and God bless you..

Regards,
Sayed Abbas
Glodyne Technoserve Ltd.
+919321803030