इन पत्थरों के शहर में हमको गुलों की तलाश है,
इस जिस्म-ओ-जां के बाजार में भोले दिलों की तलाश है।
हर रंग में बिकती हुई मुस्कान का सच झूठ क्या,
मेरे जलते सीने से लगे अब ऑंसुओं की तलाश है।
इन काले काले भौंरों की खुशामदी कब तक सुनें,
रस को संजोती छत्तों पर मधुमक्खियों की तलाश है।
घर के दिए को छोड़कर अंधेरों में भागें फिरें,
क्यों आजकल हर एक को बस जुगुनुओं की तलाश है।
आ छुप के बैठ जाएं चल, तनहा गगन के तले कहीं,
जो खोल दें सब राज-ए-दिल, खामोशियों की तलाश है।
इस जिस्म-ओ-जां के बाजार में भोले दिलों की तलाश है।
हर रंग में बिकती हुई मुस्कान का सच झूठ क्या,
मेरे जलते सीने से लगे अब ऑंसुओं की तलाश है।
इन काले काले भौंरों की खुशामदी कब तक सुनें,
रस को संजोती छत्तों पर मधुमक्खियों की तलाश है।
घर के दिए को छोड़कर अंधेरों में भागें फिरें,
क्यों आजकल हर एक को बस जुगुनुओं की तलाश है।
आ छुप के बैठ जाएं चल, तनहा गगन के तले कहीं,
जो खोल दें सब राज-ए-दिल, खामोशियों की तलाश है।
4 comments:
घर के दिए को छोड़कर अंधेरों में भागें फिरें,
क्यों आजकल हर एक को बस जुगुनुओं की तलाश है।
अच्छा लगा आपका ये खयाल...
बहुत सुन्दर!
घुघूती बासूती
चारू जी अच्छा लिखा है आपने, बराबर लिखते रहिए।
bhut khoob...
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